Monday 21 May, 2012

मीडियाई ज्योतिषी

शनि का पुनः वक्री कन्या राशि में प्रवेश ..T.V पर शोर सभी समाचार चैनल पर TRP रेटिंग के लिये शोर ,पता नहीं क्यूँ ? मुझे यह समझ नहीं आता ये सब खोगालीय घटनाये है सूर्य की गति के अनुसार सभी ग्रह गतिमान है ,जाने क्यूँ ऐसे शोर मचा कर फलित करते है की आम आदमी घबरा जाये ..क्या वाकई शनि का गोचर इतना खराब है ,शनि तो न्यायाधीश का पद प्राप्त है, अत: इनके द्वारा ही समस्त जीवों को उनके कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान किया जाता है। जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं ठीक वैसे फल शनि प्रदान करते हैं। .. प्राच्य विद्या के जानकारों को (ज्योतिषियों ) को इस तरह डरना नहीं चाहिए नहीं चाहिए ,क्या मीडियाई ज्योतिषी इस का ख्याल रखेंगे

Friday 8 January, 2010

शुभ कामना



नव वर्ष की शुभ कामनाओ  के साथ
,वर्षआरंभ के साथ पत्र एवं पत्रिकाओ में वार्षिक राशि  फलित का कौलम पढ़  कर यह सोचता हूँ  की  क्या यही ज्योतिष है अलग -अलग पत्रिकाओ मैं अलग अलग फलित ,यही हल टीवी चैनलों का है , सभी राशियों का सभी पर  सामान प्रभाव होगा  ?  इनके फलित में कही समानता नहीं ,मुझे आज तक यह बात समझ  नहीं आई की बिना जनम पत्रिका के, बिना नक्षत्र                                 के ,बिना महादशा के ,बिना गोचर के ,क्या फलित सही होगा ?   

Saturday 29 August, 2009

त्रिबल शुद्धि एवम दाम्पत्य जीवन

                      सुखी सम्रद्ध परस्पर सामंजस्य ही पूर्ण दाम्पत्य जीवन ही स्वास्थ्य समाज की नींव है .आपसी समन्वय एवं वैचारिक सामंजस्य का आभाव दाम्पत्य जीवन को दूषित बनता है .इस दाम्पत्य जीवन मैं पति एवं पत्नी दोनों की संयुक्त भूमिका आवश्यक हो जाती ही जाती है पत्नी का सोभाग्य  पति का पुर्षाथ जब दोनों की परस्पर सयुक्त मानसिकता को एक सूत्र में बंध जाते है यही वैवाहिक बंधन जन्म जन्मान्तर का मना जाता है
ज्योतिषीय दृष्टकोण से दाम्पत्य जीवन में प्रवेश के लिए वर एवं कन्या की त्रिबल शुद्धि आवश्यक है वर के लिए सूर्य जो पुर्षथा  पराक्रम एवं प्रतिष्ठा का करक है ,वही कन्या के लिए गुरु सुख सौभाग्य  का करक है , इन दोनों के उपरांत पति एवं पत्नी के मानसिक सामंजस्य के लिए चंद्र (जो मन का करक है ) की शुद्धि  होना आवश्यक है
यह तीनो शुद्धि त्रिबल शुद्धि कहलाती है
गर्ग मुनि अनुसार :-

स्त्रीणां गुरूवलं श्रष्ठं पुरूषाणं। रवेर्वलम् ।
त्योशन्द्र वलं श्र॓ष्ठामिति र्गगेणि भाषितम् ।।


अत:ववाहिक संस्कार में त्रिबल शुद्धि होना आवश्यक है तभी शास्त्र एवं संस्कृति के अनरूप ही हम संस्कारवान समाज एवं राष्ट्र दे सकते है।
समाज में समायोजित शास्त्र सम्मत संस्कारो को प्ररित करने एवं उनेह संपन कराने है दायत्व का निर्वहन ब्रह्मण समाज का है किंतु वर्त्तमान में ब्रह्मण समाज की उदासीनता  के फलसरूप  एवं हर स्तर  पर संस्कारहीनता,प्रदूषित हो गया है ,
यह बात तो रही की विप्रगण  की ,इस के लिए हम भी कही दोषी है  ,
मझे आज तक यह समझ  नहीं आया की की हम विवाह के लिए तो इतना व्यय करते है किन्तु जब जन्म पत्रिका मिलाने की बात होती है तो हम उस पंडित के पास जाते है जो हमारे यहाँ कर्मकांड करते है ,यहे ठीक है की ज्योतिष और कर्मकांड एक दूसरे के बिना नहीं चल सकता है , हम यह बिलकुल प्रयास नहीं करते की ज्योतिष मैं पंडित जी की क्या योग्यता  है,ववाहिक पत्रिका मिलाई,और दक्ष्ण  दी और चल दीये ,
हाल ही मैं कोटा नगर में पंडित जी अपने लाभ के लिए २८-०६-०९ की विवाह तारीख दी,
वर की राशिः धनु ,
कन्या की कन्या राशिः
वर की राशिः से सप्तम सूर्य  अशुभ   
कन्या की राशिः से गुरु शास्ठं अशुभ
उभयो चन्द्र शुधि
इस तारीख में पंडित जी ने ग्रह्हो की अशुभता का धयान नहीं किया गया लग्न की उपेक्षा की गयी,सूर्य व गुरु दोनों नेष्ठ थे  

अंतत : कन्या एवं परिवार  को परिवार में सामंजस्य का अभाव रहा  

अत: मैं पुनः यह कहना चाहूँगा की हम सभी ज्योतिषी  अपने लाभ को  त्याग कर  लोगो को उचित मार्गदर्शन दे एवं आम जनता पत्रिका  मिलन के लिए योग्य  ज्योतिषी का पास जाये न की करमकंडी विप्र के पास   

Saturday 15 August, 2009

II श्राद्ध विशेष II

काफी वयस्तता के बाद कुछ फुर्सत के छण मिले ,मित्रों ने कहा की काफी दिन से ब्लॉग पर कुछ लिखा नहीं अतः आज सोच की श्राद्धपक्ष आनेवाला है उसी पर कुछ लिखा जाये वैस कर्मकांड मेरा विषय नही है किंतु संस्कारो का लो़प होना मानसिक वदेना देता है
                               यत् पिण्डे तत् ब्रह्मांड (श्राद्ध मीमांस) परमात्मा की सृश्टि में अनेक लोक है। देवलोक ब्रह्मलोक, गोलोक आदि इनमें एक पितृलोक भी है जिसका प्रभाव
          ‘‘दक्षिणा प्रवणो र्वे पितृलोकः‘‘ कर्मणा पितृलोकः‘‘ ‘‘मासेभ्यः पितृलरेक दाकाषय् पितृलोक 
        अपने में एक स्वतंत्र लोक है जो दक्षिण दिषा में भूलोक के उपर चंद्र मंण्डल के अंर्तगत व आसपास है। प्रत्येक शरीर में आत्मा है तथा वह तीन रूप में पाई जाती है। 1.विज्ञान आत्म 2-महान आत्मा 3- मृत आत्मा। आष्विनि कृश्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक उपर की ओर रषिम तथा रषिम के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। यही श्राद्ध की मूलभूत धारण है कि प्रेत पितर के निमित उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धा पूर्वक जो अर्पित किया जाय वह श्राद्ध है। मृत्यु के पष्चात दषमात्र और शोडषी ने सपिण्डन तक मृतक व्यक्ति को प्रेत संबा रहती है। तथा सपिण्डन के बाद वह पितरों में सम्मिलित हो जाती है तथा पितृ पक्ष में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यामित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो पद तथा चावल का पिण्ड देता है उसमें रेतस का अंष लेकर चंद्रलोक में अपमृप्राण का दिन चुका देता है। 
श्राद्ध मुख्य दो प्रकार के होते है।
                                                   एकोदिश्ट तथा परर्वण ।
कालांतर में चार प्रकार के श्राद्ध के प्रमुुख्यता है। 
                                                              1- पार्वण 2- एकोदिश्ट 3- वृद्धि 4- सपिण्डन। 
                  हमारे धर्मषास्त्रों में श्राद्ध के संबंध में इतने विस्तार से अध्यन किया है कि समस्त धार्मिक कृत्य गौण लगते है। आजकल आधुनिक षिक्षा प्राप्त कुछ ब्रह्माण यह भी कहते हैं कि पितृपक्ष में पितृ के लिये खाद्यान्न तथा नगद रूपये किसी ऐसे अनाथालय आदि में दे ने से भी वही फल प्राप्त होता है। ऐसा सर्वथा शास्त्र  विरूद्ध है। यह एक पुण्य कार्य है जो कभी भी करे। किंतु श्राद्ध में पितृं के निमित केवल ब्रह्माण को ही भोजन करवाना तथा दक्षिणा आदि देना शास्त्र सम्मत है। 
‘‘ देषे काले च पात्रे च श्रद्धा या विधिना च येत् पितृनुदिष्य यर्वाद्भ्वच यया च श्राद्धकारिणा‘
        - ब्रह्म पुराण अनुसार  देश  काले पात्र को देखकर श्राद्ध एवं विधि  के अनुसार पितरो  के निमित जो कुछ ब्रह्माणों को दिया जाये वही श्राद्ध है। कैसी भी परिस्थिति हो श्राद्ध अवष्य करना चाहिये। इसका व्यापन न करे यदि किसी प्रकार वेदपाठी विप्र न मिले तो सदाचारी ब्रह्माण (केवल जन्म से ब्रह्माण हो) को पंक्ति मे सिरे पर वेदपाठी ब्रह्माण को बैठा दें वह अन्य ब्रह्माण को पवित्र एवं श्राद्ध का अधिकारी बना देता है। यदि ब्रह्माण न मिले हो कुषा की मनुश्याकार आकृति बनाकर उसे ब्रह्माण मानकर अनुश्ठान करे (स्कंद पुराण) यदि कुश  न भी मिले तो श्राद्ध द्रव्य अग्नि को भेंट करे या गाय को खिला दें। या जल में छोड दें । महर्शि देवल के अनुसार-:
         सर्वभवे क्षिपेद्रगौ गवे दद्यादथाप्सु वा। नैत्र प्राप्तस्ये यो पोडस्ति पैतृकस्य विषेशतः
 यदि कोई अंत्यंत निर्धन है व श्राद्ध के लिये अन्न नहीं है तो आश्रृलायन गृहंसूत्राकारानुसार् श्राद्ध के दिन ऐसे व्यक्ति किसी बैल को घास खिला दे अग्नि में सूखा तृण डाल दे और  पितृओं  को नमस्कार करे और अगर इतना भी न कर सके तो
 वृहन्नारदीय पुराणानुसार अथवा रोहानं कुयदि न्युष्चैविजिने वने दरिद्रोऽहं महापापी वदोदति विचक्षिणः।।           वह निर्जन वन में जाय और जोर जोर से यह करे कि मैं पापी हू दरिद्री हूँ  जो श्राद्ध नहीं कर सकता । वाराहपुराणानुसार वह व्यक्ति वन में जा कर दोनों भुजा उठाकर सूर्य आदि लोकपाल को अपनी बगल की मूल दिखाकर ऊँचे  स्वर में कहे कि मेरे पास धन नहीं है एवं श्राद्ध उपयोगी कोई पदार्थ भी नहीं है अतः मैं अपने पितृओं  को प्रणाम कर रहा हूँ  आप मेरी भक्ति से तृप्त हो। घर में किये गये श्राद्ध का पुण्य फल तीर्थ के किये गये श्राद्ध से आठ गुना होता हैं                                                               
                                      ‘‘ तीर्थादिश्टगुणां पुण्यं स्वगृहे ददतः शुभे।
     अंत मैं यही  कहूँगा  की   किसी भी देश काल  परिस्थ्तियो  में श्राद्ध का लोप नहीं करना चाहिए। धनवान ,निर्धन सभी के लिये षास्त्र ने मार्ग सुझाया हैं जो व्यक्ति अपने मातृ पितरौं के लिये पितृ पक्ष में उन्हें नमस्कार न कर सके , उन्हे बुद्धि विनायक सद्बुद्धि दें।








Thursday 19 February, 2009

अष्टकूट मिलान

आज काफी व्यस्तता के बाद पुनः ब्लाग पर एक आम समस्या से चिंतित हॅ। एक ओर जहाँ ज्योतिष का प्रचार बढ रहा है वहीं दूसरी ओर ज्योतिष की निंदा करनेवालों की संख्या बढ रही है। कारण अधूरा ज्ञान रखनेवाले ज्योतिषी क्योंकि यह क्षेत्र ऐसा है जहाँ अल्प ज्ञान रखने वाला भी अपने को प्रकांड विव्दान समझता है।
भारत में परिवार सुरक्षित है इसका एक बहुत बडा कारण प्राचीन भारतीय मेलापक पद्वति है । पश्चिमी देशो में परिवार का पतन हो गया है । समाज असुरक्षित हो गया है । परिवार और समाज में असुरक्षा की भावना हो गई है। भारतीय परिवार आज भी सुरक्षित है और व्यक्ति समाज से डरता है। ज्योतिष छह वेदांगों में से एक है। वेदों की स्थापना काल से ही यह तय था कि पारिवारिक इकाई जितनी सुदृढ होगी उतना ही समाज शक्तिशली होगा तथा राष्ट्र् मजबूत होगा। परिवार पति पत्नी की बीच मैतक्य की आवष्यकता के लिये प्राचीन ऋषियों ने जन्म नक्षत्र पर आधारित तुलनात्मक विवरण है जिसके पूर्णांक 36 है। ऋषियों ने अनुभव किया कि पुरूष व स्त्री के कुछ नक्षत्र तो एक दूसरे से सहयोग करते है और कुछ बिल्कुल सहयोग नहीं करते है। यहाँ बात आती है अष्ट कूट मिलान की । दक्षिण में 10 गुण माने गये हैं। इनके नाम दिन (भाग्य) गण (संपति ) महेन्द्रम (परस पर प्रेमद्ध ) स्त्रीदीघ्र्र्रम (समान्य शुभत्व) योनि (प्रणय सुखद्ध) राशि पारिवारिक उन्नति, क्षिययाधिपति (धन-धान्यद्ध , वैष्य (संतानद्ध, रज्जु ;व्यावाहरिक दीघ्र्रताद्ध वेध ;पुत्र प्राप्तिद्ध इसके अलावा पुरूष व स्त्री के गोत्र व वर्ण भी दक्षिण में देखा जाता है। उत्तर भारत में अष्ट कूट मिलान में वर्ण से कार्यक्षमता , तारा से भाग्य , वैष्य से प्रधानता , योनि से मानसिकता, ग्रह मैत्री से सामंजस्य, गण प्रधानता ,भकूट से प्रेम, नाडी से स्वास्थ्य देखा जाता है। जहाँ हम विवाह के लिए लडके व लडकी के ढूढने में इतना समय लगाते है। वहीं कुडंली हम एक अयोग्य पंडित से मिलवाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते है। हम यह भी पता नहीं करते है कि कुडंली में क्या अनुभव या दक्षता है । यही कारण है कि हमारे कई परिवार सुख व समृध्द नहीं हो पाते है।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव व उसके शोध कर पाया कि अष्टकूट मिलान कि अधिकता के उपरांत ही वैवाहिक जीवन से अस्थिरता के और भी कारण है। जिसमें सप्तम भाव व भावेश लग्न व लग्नेश की उपेक्षा भी शमिल है क्योकि नक्षत्र मिलान स्वभाव रूचि एवम् संतान पक्ष का महत्व दिया जाता है।
अभी एक वर्ष पूर्व ही एक सज्जन एक पत्रिका लेकर आए कि हमारे गाॅव के पंडित ने 26 गुण मिलान शुभ कहा है। अतः आप इसमें विवाह की शुभ तारिख निर्धारित कर दे तो मैंने उनसे कहा कि मिलान शुभ नहीं है तो उन्होंने कहा साहब 26) गुण है मैने भी तिथि वार कलैंडर पर देखा है । 26 गुण है। मैने कहा सप्तम भाव में राहू व मंगल है । लग्न व लग्नेश व चन्द्र भी पीडित है। व कन्या की मारकेश की दषा चल रही है। विवाह शुभ नहीं है। नहीं माने विवाह हो गया कन्या धनाढ्य घराने की थी खूब दहेज भी लाई थी। विवाह के छः माह बाद ही पति पत्नी में विवाद होने लगे पति के नौकरी पर जाने के उपरांत पत्नी ने कुछ खाकर आत्महत्या कर ली। कारण चन्द्र केतु से युक्त था चन्द्र भी पक्षबली नहीं था गुरू का रक्षात्मक आवरण भी नहीं था।
अतः अंत में यही है कि प़त्रिका मिलाने के लिये विंप्रगण कुछ श्रम करें तो विवाहिक जीवन की काफी कुछ अशुभ घटनाओं को टाल सकते हैं।


Friday 2 January, 2009

शुभ कामनाये

श्रध्दां मेधां यश: प्रज्ञां, विद्यां पुष्टिं श्रयिं बलम्।
तेज आयुष्यमारोग्यं, देहि त्वंम् नववर्षम ।।

Friday 5 December, 2008

शनि न्यायकरी भी


सिधार्थ जोशी जी ने कहा की कुछ ऐसा लिखो की जो आम जनता को समझ में आए , सोचा शनि के बारे में लिखा जाए क्योंकि आम जनता उसी से भयभीत रहती है
सूर्य पुत्र शनि भारतीय ज्योतिष में मान्य नवगृह मंडल में उनका प्रमुख स्थान है यह सूर्य से छठा गृह है और आकार में दूसरा गृह है यह सूर्य से १४२.७ किलोमीटर तथा पृथ्वी से १२४.२४ किलोमीटर दूर है शनि सूर्य की २९.४६ वर्ष में परिकृमा करता है इसकी परिक्रमण अवधि १० घंटा ४० मी . तथा २१ उपगृह है
शनि की दैनिक गति ३ से ६ विकला , इसकी मध्यम गति ८ कला से १ विकला होती है एक राशि में ३० माह तक रहता है तथा १४० दिन वक्री रहता है वक्री से मार्गी होते समय ५ दिन स्तंभित रहता है कुम्भ राशि के २० डिग्री तक मूल त्रिकोन तक शेष अंश में स्वगृही होता है तुला के २० अंश में परमोच्य तथा मेष में २० अंश में परम नीच का होता है शनि के नैसर्गिक बुध ,शुक्र ,राहूमित्र तथा सूर्य,चंद्र ,मंगल शत्रु तथा गुरु सम होते है अंकशास्त्र के अनुसार ८ अंक का स्वामी तथा नीलम,फिरोजा , जामुनिया शनि के रत्ना है व्यवसाय में भूमि के गर्भ के पदार्थो पर अधिकार है जैसे प्रवज्या खनन तेल ,पत्थर न्यायालय भू गर्भ्शास्त्री ,जेल, विदेशनीति , स्नायुतंत्र ,लकवा ,मानसिक परेशानी, नपुंसकता , गठिया ,आदि शनि के कारक में शामिल है
पाशचात्य ज्योतिष में दुर्भाग्य को लाने वाला कहा गया है विलियम लिली के अनुसार शीतल रुक्ष ,नीचे की और दृष्टि,केश काले , कान लटकता है अलेंलियो के अनुसार उन्हें शांत , गंभीर और विचारी प्रवृति देता है वृधावस्था पर इसका अधिकार होता है जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझाना इनका श्रेष्ठ गुण होता है
स्वतंत्र भारत की पत्रिका ( १५ अगस्त १९४७ , ००:०१ ,दिल्ली ) में भी शनि कारक है भाग्य (नवं ) एवं दशम भाव का भावेश है तथा लग्नेश की महादशा है दशम व् नवम भाव का भावेश है तथा वर्तमान में सिंह राशि का गोचर है पूर्व में नवम्बर ०६ से जनवरी ०७ तक वक्री सिंघस्था गोचर व् गुरु का अनुराधा नक्षत्र का गोचर था शनि और गुरु को न्याय से जोड़ा गया है , सिंह राशि जो की राज्यकीय (सरकार ) का घोतक है के ऊपर से शनि का गोचर न्यायपालिका के कठोर निर्णय का सूचक है
भारतीय इतिहास में किसी भी केंद्रीय मंत्री को न्यायालय द्वारा उम्रकैद (शिब्बू सरीन ) नवजोत सिंग सिद्धू , राज्य सरकारों को कड़ी फटकारें सर्वौच्च न्यालय के ऐसे उधाहरण है जो शनि की सूर्य की राशि से गोचर का सूचक है तथा अभी भी न्यालय द्वारा ऐसे कठोर निर्णय जो इतिहासिक होगे
काल पुरूष की दशम एवं एकादश भाव की राशि शनि की है जैसा की दशम कर्म एवं एकादश (आय) कर्म के अनुसार फल का भाव है येही शनि दर्शाते है की जिस अनुसार कर्म करोगे उसी कर्मानुसार फल मिलेगा
अत: आम जनता भयभीत न हो कर अच्छे कर्म करे शनि यह ही संदेश देना चाहते हैं